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कृष्ण की चेतावनी ( krishna ki chetavni )

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कृष्ण की चेतावनी। रामधारी सिंह दिनकर यह कविता दिनकर जी की अमूल्य रचना रश्मिरथी से ली गयी है। वर्षों  तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। ‘दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका, उल्टे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- ‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। ‘उदयाचल मेरा दीप्...

कुरुक्षेत्र / प्रथम सर्ग / भाग 1

                   कुरुक्षेत्र / प्रथम सर्ग / भाग 1 वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहू का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्यवहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से; देश की इज्जत बचाने के लिए या चढा जिसने दिये निज लाल हैं। ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी। विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से। हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही- उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का! लड़...