कुरुक्षेत्र (सभी सर्ग ) | रामधारी सिंह दिनकर
कुरुक्षेत्र प्रथम सर्ग कुरुक्षेत्र / प्रथम सर्ग / भाग 1 कुरुक्षेत्र / प्रथम सर्ग / भाग 2 द्वितीय सर्ग कुरुक्षेत्र / द्वितीय सर्ग / भाग 1 कुरुक्षेत्र / द्वितीय सर्ग / भाग 2 कुरुक्षेत्र / द्वितीय सर्ग / भाग 3 कुरुक्षेत्र / द्वितीय सर्ग / भाग 4 कुरुक्षेत्र / द्वितीय सर्ग / भाग 5 तृतीय सर्ग कुरुक्षेत्र / तृतीय सर्ग / भाग 1 कुरुक्षेत्र / तृतीय सर्ग / भाग 2 कुरुक्षेत्र / तृतीय सर्ग / भाग 3 कुरुक्षेत्र / तृतीय सर्ग / भाग 4 कुरुक्षेत्र / तृतीय सर्ग / भाग 5 कुरुक्षत्र रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी रचनाओं में से एक है। इस काव्य में इन्होने महाभारत के भीषण युध के पश्चात के एक महत्वपूर्ण अध्याय का सरल हिंदी तुकांत भाषा में वर्णन किया है। युधिष्ठिर का पश्चाताप, भीष्म की सिख, युद्ध का कारणं , युद्ध का अंतिम परिणाम तथा मानव जीवन के कुछ अमूल्य रहस्यों को समझाते हुए दिनकर जी ने बहुत ही अद्भुत शब्द चयन के साथ इस कविता की नीव राखी है। इनकी कुछ लाइन झझकोर देने वाली है जैसे " बद्ध, विदलित और साधनहीन को है उचित अवलम्ब अपनी आह का; गिड़गिड़ा...