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सफलता खोज लूँगा | डॉ. अजय पाठक

  तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ, दूर जाऊँगा समझ लो। व्यर्थ है आवाज़ देना, आ न पाऊँगा समझ लो। जोगियों से मन लगाना, छोड़ दो मुझको बुलाना। राह में दुश्वारियाँ हो. . . मैं सरलता खोज लूँगा, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! एक रचनाकार हूँ, निर्माण करने में लगा हूँ। मैं व्यथा का सोलहों- सिंगार करने में लगा हूँ। यह कठिन है काम लेकिन, श्रम अथक अविराम लेकिन। इस थकन में ही सृजन की मैं सबलता खोज लूँगा। मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! फूल की पंखुड़ियों पर, चैन से तुम सो न पाए। जग तुम्हारा हो गया पर, तुम किसी के हो न पाए। तुम अधर की प्यास दे दो, या सुलगती आस दे दो। मैं हृदय की फाँस में अपनी तरलता खोज लूँगा, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! रात काली है मगर यह, और गहरी हो न जाए। फिर तुम्हारी चेतनायें, शून्य होकर खो न जाए। इसलिए मैं फिर खड़ा हूँ, स्याह रातों से लड़ा हूँ। मैं तिमिर में ही कहीं, सूरज निकलता खोज लूँगा। मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

जाग तुझको दूर जाना | महादेवी वर्मा

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  चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले! पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना! जाग तुझको दूर जाना! बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले? पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले? विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन, क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले? तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना! जाग तुझको दूर जाना! वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया, दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया! सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या? विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया? अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना? जाग तुझको दूर जाना! कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी, आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी; हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका, राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी! है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना! जाग तुझको दूर जाना! महादेव...

पथ की पहचान | हरिवंशराय बच्चन

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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले पुस्तकों में है नहीं छापी ग ई इसकी कहानी , हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी, अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या, पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी, यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है, खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले। पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले। है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे, है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे, किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित, है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा, आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले। पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले। कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में, देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में, और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता, ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में, किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ, स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले। पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले। स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति...

कोशिश करने वालो की हार नही होती | हरिवंश राय बच्चन

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कोशिश करने वालो की हार नही होती| हरिवंश राय बच्चन लहरो  से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है मन का विश्वास रगों में साहस भरता है चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नहीं होती असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती कोशिश करने वालों की हार नही होती। हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ