सफलता खोज लूँगा | डॉ. अजय पाठक

 तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ,
दूर जाऊँगा समझ लो।
व्यर्थ है आवाज़ देना,
आ न पाऊँगा समझ लो।
जोगियों से मन लगाना,
छोड़ दो मुझको बुलाना।
राह में दुश्वारियाँ हो. . . मैं सरलता खोज लूँगा,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

एक रचनाकार हूँ,
निर्माण करने में लगा हूँ।
मैं व्यथा का सोलहों-
सिंगार करने में लगा हूँ।
यह कठिन है काम लेकिन,
श्रम अथक अविराम लेकिन।
इस थकन में ही सृजन की मैं सबलता खोज लूँगा।
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

फूल की पंखुड़ियों पर,
चैन से तुम सो न पाए।
जग तुम्हारा हो गया पर,
तुम किसी के हो न पाए।
तुम अधर की प्यास दे दो,
या सुलगती आस दे दो।
मैं हृदय की फाँस में अपनी तरलता खोज लूँगा,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

रात काली है मगर यह,
और गहरी हो न जाए।
फिर तुम्हारी चेतनायें,
शून्य होकर खो न जाए।
इसलिए मैं फिर खड़ा हूँ,
स्याह रातों से लड़ा हूँ।
मैं तिमिर में ही कहीं, सूरज निकलता खोज लूँगा।
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

Comments

Popular posts from this blog

कैकेई का अनुताप / मैथिलीशरण गुप्त

कुरुक्षेत्र (सभी सर्ग ) | रामधारी सिंह दिनकर

रश्मिरथी / प्रथम सर्ग / भाग 1 | रामधारी सिंह दिनकर

रात आधी खींच कर मेरी हथेली | हरिवंशराय बच्चन