कोई अर्थ नहीं | अज्ञात

 नीत जीवन के संघर्षो से 

जब टूट चुका हो अन्तर्मन,

तब सुख के मिले समन्दर का

रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

 

 जब फसल सूख कर जल के बिन
     तिनका -तिनका बन गिर जाये,
     फिर होने वाली वर्षा का
     रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

     छोटी-छोटी खुशियों के क्षण
     निकले जाते हैं रोज़ जहाँ,
     फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
     रह जाता कोई अर्थ नहीं।।*

मन कटुवाणी से आहत हो
   भीतर तक छलनी हो जाये,
  फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

सुख-साधन चाहे जितने हों
     पर काया रोगों का घर हो,
     फिर उन अगनित सुविधाओं का
     रह जाता कोई अर्थ नहीं।।

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