बढ़ अकेला | त्रिलोचन

 बढ़ अकेला


यदि कोई संग तेरे संग वेला
बढ़ अकेला

चरण ये तेरे रुके ही यदि रहेंगे
देखने वाले तुझे, कह, क्या कहेंगे
हो न कुंठित, हो न स्तंभित
यह मधुर अभियान वेला
बढ़ अकेला

श्वास ये संगी तरंगी क्षण प्रति क्षण
और प्रति पदचिन्ह् परिचित पंथ के कण
शून्य का श्रृंगार तू
उपहार तू किस काम मेला
बढ़ अकेला

विश्व जीवन मूल दिन का प्राणमय स्वर
सांद्र-पर्वत-श्रृंग पर अभिराम निर्झर
सकल जीवन जो जगत के
खेल भर उल्लास खेला
बढ़ अकेला



 त्रिलोचन

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